MP में सांपों की गिनती पर सीएम ने जताई चिंता, बोले- 'हम उनकी लाशें ढो रहे

भोपाल: किंग कोबरा लाए जाने के बाद अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वन विभाग के अधिकारियों से सांपों की गिनती भी कराए जाने के लिए कहा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि "मैं इसके लिए पहले भी तीन-चार बार कह चुका हूं. मुख्यमंत्री ने मंच से ही वन विभाग के अपर मुख्य सचिव से इसके प्रावधान के बारे में सवाल किया. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भोपाल के प्रशासन अकादमी में शुरू हुए दो दिवसीय वन संरक्षण व जलवायु समर्थ आजीविका विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारंभ कार्यक्रम में पहुंचे थे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव भी मौजूद थे.
सांपों की गिनती क्यों नहीं
मुख्यमंत्री ने प्रदेश में सापों की गिनती को लेकर कहा कि "रेप्टाइल में सांपों की गिनती नहीं होती. फॉरेस्ट का यह हिसाब समझ ही नहीं आता. प्राणी तो वह भी हैं. इसकी वजह से किंग कोबरा धीरे-धीरे गायब हो गया. जिस तरह जंगल में टाइगर की कमी की वजह से ईको सिस्टम बिगड़ता है, इसी तरह किंग कोबरा की वजह से वनों का ईको सिस्टम बिगड़ा है. सीएम ने कहा कि सर्प की गिनती भी कराई जानी चाहिए.
कार्यक्रम में मंच के सामने बैठे एसीएस अशोक वर्णवाल से मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या सांपों की गिनती का एक्ट में प्रावधान नहीं है. मंच पर बैठे केन्द्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि "एक्ट में इसका प्रावधान है. इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि फिर तो इसकी गिनती कराई जानी चाहिए. मैं पहले भी तीन-चार बार कह चुका हूं. समझ नहीं आता कि एक्ट में इसका प्रावधान क्यों नहीं है, कि जानवर ही जंगल में नहीं हैं. इसके नुकसान वनांचल इलाकों में दिखाई देता है. महाकौशल इलाके में बड़ी संख्या में सर्पदंश की वजह से लोगों की मौत हो रही है. जहरीले सांपों की संख्या बढ़ी है, इसलिए किंग कोबरा की बात आई.
सीएम बोले अंग्रेजों के आदेशों की लाश क्यों ढो रहे
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि "वनों में पेड़ लगना चाहिए, लेकिन सागौन के ही लगने चाहिए, यह समझ नहीं आता. जंगल में पेड़ लग रहे हैं या फिर फसल पैदा हो रही है. जंगल तो वही है. जिसमें सभी तरह के पेड़ पौधे होने चाहिए. हम अंग्रेजों की उस भावना को नहीं समझ पाए कि वह इससे फायदा कमा कर चले गए. अंग्रेज तो चले गए, लेकिन हम उनकी लाश ढो रहे हैं. हम उस रास्ते पर जा रहे हैं, जिससे हमें बाहर आना चाहिए था."
अधिकारियों ने वन को लेकर एक नया शब्द निकाला है बिगड़े वनों का. मध्य प्रदेश के अधिकारियों ने दो साल में बिगड़े वनों में सुधार किया है, लेकिन यह बिगड़े वन समझ ही नहीं आता. उजड़े वन तो समझ आते हैं, लेकिन बिगड़े वन नहीं. प्रदेश के वनों में सुधार किया गया है. वनों को लेकर कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने वन क्षेत्रों में जनजातियों के पूजा स्थलों को लेकर कहा कि वन क्षेत्र में पूजा-पाठ के कई स्थान हैं. यह भावना-आस्था से जुड़े विषय होते हैं. आस्था पर चोट कर हम किसको बचाएंगे. पूजा स्थल के नाम पर वहां कोई महल तो बनाए नहीं जाते. इसके लिए नियम बदलने की जरूरत हुई तो यहां केन्द्र के मंत्री भी बैठे हैं और हम भी हैं.
मध्य प्रदेश को गुजरात से मिले पानी की राशि
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में प्राकृतिक वन संपदा की वजह से ही प्रदेश से निकलने वाली बड़ी-बड़ी नदियों का पानी दूसरे राज्यों तक जाता है. गुजरात की प्रगति हो रही है, केन-बेतवा के माध्यम से उत्तर प्रदेश और केन का पानी बिहार में जा रहा है. इसलिए जल राशि ली जा रही है, तो मध्य प्रदेश का उसका हिस्सा मिलना चाहिए. जंगल इन नदियों को बचाने के लिए है, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार ने अपने स्तर पर नर्मदा समग्र का काम किया है, लेकिन एक बड़े समग्र रूप से इस पर जल राशि को लेकर विचार होना चाहिए.