ट्रंप और मस्क के बीच जंग करने में चीन की अहम भूमिका
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी टेस्ला के मालिक एलन मस्क, दो ऐसी हस्तियां हैं जो अपनी बेबाक राय और बड़े फैसलों के मशहूर हैं। ट्रंप के चुनावी अभियान से लेकर बीते कुछ दिनों तक मस्क उनके करीबी थे। लेकिन अब दोनों के बीच तनाव खुलकर सामने आ गया है। खबरों के मुताबिक, मस्क-ट्रंप के बीच तनातनी का कारण एक विधेयक है, लेकिन असल कहानी कहीं गहरी और पेचींदा है। इसके पीछे अमेरिका-चीन के बीच चल रहा ट्रेड वॉर, चिप बैन, और सबसे अहम, रेयर अर्थ मैटेरियल्स का संकट, जो मस्क की कंपनियों के लिए मुसीबस बना है।
लेकिन असली जड़ चीन की रणनीति और ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियां है। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही चीन, कनाडा, और मैक्सिको जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाने की नीति बनाई। खास तौर पर चीन पर 10 से लेकर 145 प्रतिशत तक के टैरिफ लगाए गए, इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामानों पर जवाबी टैरिफ और प्रतिबंध लगा दिए। इस ट्रेड वॉर का सबसे बड़ा हथियार बना है रेयर अर्थ मैटेरियल्स। ये वे खनिज हैं, जिनका इस्तेमाल आधुनिक तकनीक जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, रॉकेट, रोबोट, और माइक्रोचिप्स में होता है। चीन इन मैटेरियल्स का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और आपूर्तिकर्ता है, और उसने हाल ही में इनके निर्यात पर सख्ती दिखानी शुरु कर दी है। अब चीन केवल उन कंपनियों को ये मैटेरियल्स दे रहा है, जो यह साबित करें कि उनका अमेरिकी सेना से कोई संबंध नहीं है।
चीन द्वारा रेयर अर्थ मिनरल्स और उनसे जुड़ी मैग्नेट्स के निर्यात पर नए लाइसेंसिंग नियम लागू किए दो माह हो चुके हैं, लेकिन अब इसके गंभीर असर पश्चिमी देशों की औद्योगिक इकाइयों में दिख रहे हैं। स्मार्टफोन से लेकर लड़ाकू विमानों तक में जरूरी सात तत्वों (डिस्प्रोसियम, गैडोलिनियम, लुटेशियम, समेरियम, स्कैन्डियम, टरबियम और इट्रियम) की आपूर्ति में आई रुकावटों से ऑटोमोबाइल सेक्टर में हलचल मच गई है। रेयर अर्थ तत्व वास्तव में दुर्लभ नहीं होते, लेकिन इनका खनन और प्रोसेसिंग अत्यंत कठिन होती है। दुनिया में कुल 17 रेयर अर्थ तत्व हैं, जिसमें 15 लैन्थेनाइड्स और दो अन्य स्कैन्डियम और इट्रियम शामिल हैं। चीन इस क्षेत्र में केवल खनन ही नहीं, बल्कि 90 प्रतिशत प्रोसेसिंग क्षमता भी रखता है। अमेरिका, म्यांमार जैसे देश भी खनन करते हैं, लेकिन अंतिम प्रोसेसिंग अधिकतर चीन में ही होती है। इकारण बीजिंग को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारी दबदबा हासिल है।
अप्रैल में चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने घोषणा की थी कि अब सात प्रकार के रेयर अर्थ तत्वों और मैग्नेट्स के निर्यात के लिए लाइसेंस जरूरी होगा, जिसमें अंतिम उपयोग का प्रमाण और डिक्लेरेशन भी देना होगा। भले ही यह नियम सभी देशों पर लागू होता है, लेकिन इस कदम को अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोध के तौर पर देखा जा रहा है। चीन ने इससे पहले गैलियम, जर्मेनियम और टंगस्टन जैसे अन्य अहम खनिजों पर भी निर्यात नियंत्रण लगाया था। बीजिंग का कहना है कि ये कदम अवैध खनन रोकने और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं। भारत के पास दुनिया के 6 प्रतिशत रेयर अर्थ भंडार हैं, लेकिन उसकी वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी मात्र 0.25 प्रतिशत है।